एक अनोखी बात...! एक अनोखी बात...!
आज के समाज में इंसान किस तरह इंसानियत को भूला बैठा है उसी पे कुछ पंक्तिया लिखी है मैंने... आज के समाज में इंसान किस तरह इंसानियत को भूला बैठा है उसी पे कुछ पंक्तिया लिखी ह...
मैं मध्यम वर्गीय हूँ खजूर के पेड़ पर झूले जा रहा हूँ। मैं मध्यम वर्गीय हूँ खजूर के पेड़ पर झूले जा रहा हूँ।
इन्साफ, क़ानून, पैसा, और शोहरत, इनके लिए खड़े हर मोड़ पर रहते हैं ! इन्साफ, क़ानून, पैसा, और शोहरत, इनके लिए खड़े हर मोड़ पर रहते हैं !
मानता हूँ मैं कि सांवला जरूर हूँ। मगर मन का मैं बिल्कुल शीशा हूँ। मानता हूँ मैं कि सांवला जरूर हूँ। मगर मन का मैं बिल्कुल शीशा हूँ।
दिल तोड़कर किसी का मुस्कराते हैं लोग...! दिल तोड़कर किसी का मुस्कराते हैं लोग...!